हिंदी कहानियां - भाग 137
नाई के दूसरे भाई बकबारह की कहानी
नाई के दूसरे भाई बकबारह की कहानी दूसरे रोज खलीफा के सामने पहुँच कर मैं ने कहा कि मेरा दूसरा भाई बकबारह पोपला है। एक दिन उससे एक बुढ़िया ने कहा, मैं तुम्हारे लाभ की एक बात कहती हूँ। एक बड़े घर की स्वामिनी तुम से आकृष्ट है। मैं तुम्हें उसके घर ले जा सकती हूँ। उस की कृपा हो गई तो तुम शीघ्र ही धनवान हो जाओगे। मेरे भाई ने उसका बड़ा अहसान माना और कुछ पैसे भी बुढ़िया को दिए। बुढ़िया ने कहा, लेकिन मैं एक चेतावनी तुम्हें देती हूँ। उस सुंदरी की उम्र कम है और उसका बचपन और खिलंदरापन अभी नहीं गया है। वह अपने मित्रों और उन सभी लोगों के साथ तरह-तरह के तंग करनेवाले मजाक करती है, इसी में उसे आनंद आता है। और अगर कोई उसके शारीरिक परिहासों का बुरा मानता है तो वह उससे हमेशा के लिए बिगड़ जाती है और कभी उसका मुँह नहीं देखती। इसलिए यह जरूरी है कि वह और उस की सहेलियाँ और दासियाँ तुम से कितनी ही छेड़छाड़ या खींचतान करें तुम किसी बात का बुरा न मानना। मेरे भाई ने यह बात स्वीकार कर ली। फिर एक दिन वह बुढ़िया मेरे भाई को वहाँ ले गई। मेरे भाई बकबारह को उस भवन की विशालता और भव्यता को देख कर अति आश्चर्य हुआ। बुढ़िया के साथ होने से उसे किसी द्वारपाल ने नहीं रोका। बुढ़िया ने फिर ताकीद की कि वह सुंदरी या उसके साथ की स्त्रियाँ हँसी-मजाक करें तो बुरा न मानना। महल बहुत ही शानदार था और निवास कक्षों के सामने एक मनोहर उद्यान था। बुढ़िया उसे एक दालान में बिठा कर अंदर गई कि उसके आने का समाचार गृहस्वामिनी को दे। कुछ देर में उसने कई स्त्रियों के आने की आवाज सुनी। वह चैतन्य हो कर बैठ गया। बहुत सी स्त्रियों का समूह वहाँ आ गया। वे सब परिचारिकाएँ लग रही थीं। बकबारह को देख कर वे सब हँसने लगी। उन सेविकाओं के बीच में एक अति सुंदर रमणी मूल्यवान वस्त्राभूषण पहने शालीनतापूर्वक आ रही थी। स्पष्टतः वह उनकी स्वामिनी थी। बकबारह इतने स्त्रियों को देख कर घबरा-सा गया। उसने उसे झुक कर सलाम किया। उस सुंदरी ने उसे बैठ जाने को कहा और मुस्कुरा कर बोली, हम लोगों को तुम्हारे आगमन से बड़ी प्रसन्नता हुई है, अब तुम बताओ कि तुम क्या चाहते हो। मेरे भाई ने कहा कि मैं केवल यह चाहता हूँ कि आपकी सेवा में रहूँ। उसने कहा कि अच्छी बात है, मैं भी यही चाहती हँ कि हम लोग चार घड़ी हँस-बोल कर काटें। यह कह कर उसने अपनी दासियों को भोजन लाने की आज्ञा दी। दासियों ने भोजन परोसा और भोजन के लिए बकबारह को अपनी स्वामिनी के सम्मुख ही बिठाया। जब बकबारह ने खाने के लिए मुँह खोला तो उसने देखा कि इसके मुँह में एक भी दाँत नहीं है। उसने अपनी सेविकाओं को इशारे से यह दिखाया और हँसने लगी। वे सब भी हँसीं। मेरा भाई समझा कि मेरी संगत से यह प्रसन्न है इसलिए वह भी हँसने लगा। फिर उस सुंदरी ने अपनी दासियों को हट जाने का इशारा किया और अपने हाथ से कौर उठा- उठा कर उसे खिलाना शुरू किया। खाने के बाद सुंदरी की परिचारिकाएँ आईं और नाचने- गाने लगीं। मेरा भाई भी उन लोगों के साथ नाचने-गाने लगा। केवल वह सुंदरी ही चुपचाप बैठी रही। नाच-गाना समाप्त होने के बाद सब सेविकाएँ बैठ कर आराम करने लगीं। मेरे भाई को उस सुंदरी ने एक गिलास भर कर शराब दी और एक गिलास खुद पी। मेरे भाई ने कृतज्ञतावश खड़े हो कर पिया क्योंकि स्वयं अपने हाथों से मदिरा दे कर सुंदरी ने उसे सम्मानित किया था। सुंदरी ने उसे अपने पास बिठाया। वह सलाम कर के बैठ गया। सुंदरी ने उसके गले में बाँह डाल दी और उसके मुँह पर धीरे-धीरे तमाचे मारने लगी। मेरा भाई स्वयं को संसार का सबसे भाग्यशाली मनुष्य समझ रहा था कि ऐसी सुंदर और धनवान स्त्री उसे इतना प्यार दे रही है। किंतु अचानक ही उस स्त्री ने उसे जोर-जोर से तमाचे मारना शुरू कर दिया। अब वह बिगड़ कर उस सुंदरी से दूर जा बैठा। बुढ़िया भी कुछ दूर पर मौजूद थी। वह इशारा करने लगी कि तुम नाराज हो कर ठीक नहीं कर रहे हो, मैं ने तुम से क्या कहा था। मेरा मूर्ख भाई फिर उस सुंदरी के पास जा कर बैठ गया और कहने लगा कि आप यह न समझें कि मैं नाराज हो कर आप से दूर जा बैठा था। दरअसल दूसरी ही बात थी। उस सुंदरी ने उसका हाथ पकड़ कर अपने पास बिठा लिया। सुंदरी ने प्रकट में तो उस पर बड़ी कृपा की किंतु अपनी दासियों को इशारा कर दिया और वे उसे भाँति-भाँति से दुखी करे लगीं। उन्होंने मेरे भाई को बिल्कुल विदूषक बना डाला। कोई उस की नाक पकड़ कर खींचती कोई उसके सिर पर धौलें मारती। इसी बीच मौका पा कर मेरे भाई ने बुढ़िया से कहा कि तुम ठीक कहती थीं, ऐसे विचित्र स्वभाव की स्त्री कहीं संसार में नहीं मिलेगी और तुम भी देखो कि मैं इन लोगों को प्रसन्न करने के लिए कैसे-कैसे दुख सह रहा हूँ। उसने कहा कि अभी देखते जाओ क्या होता है। फिर उस सुंदरी ने मेरे भाई से कहा, तुम तो बड़े बिगड़ैल जान पड़ते हो। हम लोग जरा-सा हँसी-मजाक करते है तो तुम बुरा मान जाते हो। हम तो तुम से खुश हैं और तुम पर मेहरबानियाँ करना चाहते हैं और तुम्हारे मिजाज ही नहीं मिलते। मेरे भाई ने कहा, नहीं मेरी सरकार, ऐसी कोई बात नहीं है। मैं आपकी प्रसन्नता के लिए प्रस्तुत हूँ। जैसा चाहेंगी वैसा ही करूँगा। जब उस स्त्री ने देखा कि वह निपट मूर्ख उसके कहने में पूरी तरह आ गया और हर बात बर्दाश्त कर लेगा तो उसके गले में बाँहें डाल कर कहने लगी कि अगर तुम वास्तव में हमें प्रसन्न करना चाहते हो तो हमारी तरह हो जाओ। मूर्ख बकबारह बिल्कुल न समझा कि उसका क्या तात्पर्य है। उस मदमाती नवयौवना ने अपनी सेविकाओं से कहा कि गुलाब जल और इत्र- फुलेल लाओ ताकि हम अपने मेहमान का आदर-सत्कार करें। यह चीजें आने पर उसने अपने हाथ से मेरे भाई पर गुलाब जल छिड़का और उसके कपड़ों पर इत्र लगाया। वह यह सब देख कर फूला नहीं समाता था। फिर उस सुंदरी ने अपनी सेविकाओं को फिर राग रंग की आज्ञा दी और उन्होंने फिर नाचना-गाना शुरू किया। फिर उसने दासियों से कहा कि इस आदमी को दूसरे कमरे में ले जाओ और जिस तरह मैं चाहती हूँ इसे सजा-सँवार कर ले आओ। बकबारह यह सुन कर बुढ़िया के पास गया और पूछा कि यह लोग मेरे साथ क्या करेंगी। उसने कहा, यह सुंदरी तुम्हें स्त्री रूप में देखना चाहती हैं। अब यह परिचारकाएँ तुम्हारी भौंहों को रंग कर सजाएँगी और तुम्हारी मूँछें मूड़ कर तुम्हें स्त्रियों जैसे वस्त्र पहनाएँगी। बकबारह ने कहा, स्त्रियों के कपड़े मैं पहन लूँगा और भौंहें भी रँगवा लूँगा क्योंकि उन्हें पानी से धो सकता हूँ किंतु मूँछें नहीं मुड़वाऊँगा। इससे तो मेरी सूरत बड़ी अजीब लगेगी। बुढ़िया ने कहा, इस मामले में कोई बहस या कोई जिद न करना। यह सुंदरी तुम पर मोहित है। तुम से जरा-सा हँसी-ठट्ठा करना चाहती है तो कर लेने दो, क्या हर्ज है। यह तुम्हें इतना धन देगी जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। इस मामले में अगर तुमने हुज्जत की तो सारा मामला खराब हो जाएगा। तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा। इस पर वह बेचारा राजी हो गया और दासियों से कहने लगा कि मेरे साथ जो चाहो वह करो। दासियाँ उसे दूसरे कमरे में ले गईं। उन्होंने तरह-तरह से उस की भौंहों को रँगा और उस की मूँछें मूँड़ दीं। फिर उन्होंने उस की दाढ़ी मूँड़नी चाही तो उसने फिर प्रतिरोध किया। वे कहने लगीं कि यदि दाढ़ी बचानी थी तो मूँछें क्यों मुड़वाईं, स्त्रियों के वस्त्रों के साथ दाढ़ी कैसे चलेगी। अब वह बेचारा दाढ़ी मुड़वाने को भी तैयार हो गया। दासियों ने उस की दाढ़ी मूड़ कर उसे स्त्रियों के कपड़े पहनाए। इसके बाद वे उसे सुंदरी के पास ले आईं। वह इसका यह रूप देख कर हँसते-हँसते लोट-पोट हो गई। उसने कहा, तुम ने यहाँ तक मेरी बात मानी है तो एक बात और मान लो। तुम सर पर हाथ रख कर और नाक पर उँगली रख कर स्त्रियों की भाँति नाच कर दिखाओ। वह उसी प्रकार नाचने लगा। सारी सेविकाएँ यहाँ तक कि गृहस्वामिनी भी उसके साथ नाचने लगी। वे सब इस तमाशे पर हँसते-हँसते पागल-सी होती जा रही थीं। उन स्त्रियों ने उसे केवल नचाया ही नहीं, और भी दुर्गति की। उन्होंने उसके हाथ-पाँव बाँध दिए, उसे खूब थप्पड़ और लातें मारीं और उसे उठा-उठा कर एक दूसरे पर फेंकने लगीं। यह देख कर बुढ़िया ने पूर्व योजनानुसार उन सब को डाँटा कि यह बेहूदगी बंद करो। अभिप्राय यह था कि वह बुढ़िया को हितचिंतक समझे और उसके कहने से और तमाशे करे। अब बुढ़िया ने उसे एक ओर ले जा कर कहा, तुम्हें दुखी तो बहुत किया गया किंतु अब केवल एक बात ही रह गई है। उसमें सफल हो गए तो पौ बारह समझो। यह सुंदरी जब किसी पर प्रसन्न होती है तो उसके साथ एक खेल जरूर करती है। शराब पीने के बाद यह उस व्यक्ति को, उसके सारे कपड़े उतरवा कर और कमर पर एक छोटा कपड़ा भर बँधवा कर अपने सामने बुलाती है और उसके आगे दौड़ती हुई उससे कहती है कि मुझे पकड़ो और कमरे-कमरे और दालान-दालान में दौड़ती फिरती है। जब वह थक कर खड़ी हो जाती है और वह व्यक्ति उसे पकड़ लेता है तो उस की बाँहों में चली जाती है। अतएव मेरे भाई ने एक लँगोट को छोड़ कर सारे कपड़े उतार डाले और वह स्त्री उससे बीस कदम आगे भागने लगी। भागते-भागते वह उसे एक बिल्कुल अँधेरे कमरे में ले गई। वह स्वयं तो न जाने कहाँ निकल गई, वह बेचारा अँधेरे में भटकता रहा। अंत में एक ओर प्रकाश देख कर वह उधर दौड़ा। वह पिछवाड़े का दरवाजा था। मेरा भाई वहाँ से ज्यों ही निकला कि वह द्वार बंद हो गया। पिछवाड़े की गली में चर्मकार रहते थे। उन्होंने एक दाढ़ी, मूँछ मुड़ाए, भौंहे रँगाए, लँगोट पहने आदमी को देखा तो उन्हें आश्चर्य हुआ और शरारत भी सूझी। उन्होंने हँसना और तालियाँ बजाना और चपतियाना शुरू किया। फिर वे एक गधा पकड़ लाए और उस पर उसे बिठा दिया और बाजार की तरफ ले जाने लगे। मेरे भाई के दुर्भाग्य से रास्ते में काजी का घर पड़ता था। काजी ने शोर सुन कर अपने नौकर से पुछवाया कि क्या बात है। नौकरों ने सब लोगों को काजी के सामने ला खड़ा किया। काजी के पूछने पर चर्मकारों ने कहा, सरकार, हमने इस आदमी को इसी दशा में उस गली में पाया जो मंत्री के महल के पिछवाड़े खुलती है। यह वहीं घूम रहा था। काजी ने मंत्री के महल का नाम सुन कर कहा, यह पागल और खतरनाक आदमी मालूम होता है। इसे लिटा कर इसके पाँव उठवा कर तलवों पर सौ डंडे मारे जाएँ और उसके बाद इसे शहर से निकाल दिया जाए। इसके बाद इसके नगर में प्रवेश पर हमेशा के लिए रोक लगा दी जाए। अतएव ऐसा ही किया गया। इसके बाद नाई ने कहा कि सरकार, यह मेरे दूसरे भाई बकबारह की कहानी है जो मैं ने आपको सुनाई है। अब मैं आपको अपने तीसरे भाई की कहानी सुनाता हूँ। यह कह कर बगैर खलीफा की अनुमति लिए वह कहानी सुनाने लगा।